धरा से शिखर तक तिरंगा - कविता - अभिषेक अजनबी

यह धरा है स्वाभिमान की,
यह धरा है हनुमान की।
इस धरा की बात निराली,
यहाँ की हर लड़की है काली।
इस धरती से टकराने की हर मनसा का हवन करो,
भला इसी में हाथ जोड़ बस राम नाम का भजन करो।
याद करो अब्दुल हमीद को,
याद करो भगत के ज़िद को।
याद करो उद्धम के काम को,
याद करो तुम प्रभु श्री राम को।
नब्बे हज़ार उन निशाचरों को हमने पल में संत किए,
दो तपसी भारत से चल कर दानव दल का अंत किए। 
हम उस राम के वंशज हैं यह दुविधा वाली बात नहीं,
हमें कोई भी हरा सके है दुनियाँ की औक़ात नहीं।
आज़ादी आज़ाद रखेंगे ऐसा वचन हमारा है,
आज़ाद हिंद में सब आज़ाद हैं ऐसे वतन हमारा है।
लाखों मस्तक दिए हैं हमने तब आज़ादी आया है,
क़ुर्बानी के उत्तुंग शिखर पर दिव्य तिरंगा लहराया है।

अभिषेक अजनबी - आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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