करते सभी यक़ीन, झूठ पर नित दिन।
देता नित्य सबूत, सत्य है छिन-छिन॥
अंधकार से हार, उजाला रोता।
अंधा ये क़ानून, बोझ है ढोता॥
नागफनी का दंश, जगत में ज़ाहिर।
दिल पर कर आघात, लूटते माहिर॥
विश्वासों का कंठ, घोटते जाते।
कर काली करतूत, नहीं शर्माते॥
उपवन का हर फूल, नोंचता माली।
दुर्गन्धो के बीच, खड़ा कर खाली॥
करके सर्व विनाश, कोसता ख़ुद को।
कर लेता वह फूस, स्वयं ही तन को॥
लड़ा धर्म के हेतु, वही रण जीता।
सब ग्रन्थों में एक, कहे यह गीता॥
कौरव कुल का नाश, बना मद कारण।
बुरे व्यक्ति का अन्त, हुआ ज्यों रावण॥
मन मोहक संसार, दिया मन भावन।
मम प्रभु अपरम्पार, तुम्हीं हो पावन॥
सिखलाते हैं नाथ, खुले रख आनन।
धन्यवाद आभार, करूँ अभिवादन॥
डॉ॰ आदेश कुमार पंकज - सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)