माँ - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

काँपती थरथराती कलम मेरी
माँ पर मैं क्या लिख सकता हूँ?
जिसने मुझे लिखा
उस माँ को मैं भला कौन सा शब्द दे सकता हूँ।
हज़ारों लाखों लोग माँ पर लिखने का
हर रोज़ बीड़ा उठाते हैं,
पर बीच में ही तैरते रह जाते हैं।
काफ़ी कुछ लिखा गया है
और लिखा जाता रहेगा अनंत काल तक
पर माँ पर संपूर्ण लेखन नहीं हो पाएगा।
क्योंकि माँ संपूर्ण है
माँ के सामने धरती आकाश ही नहीं
ईश्वर भी नतमस्तक है, मौन है,
फिर भला संपूर्ण को कौन पूर्ण कर पाएगा,
बस इतना भर होता है, होता रहेगा
माँ लिखने वाला हर कोई
माँ के ममत्व का अहसास कर पाएगा।
माँ पर कुछ लिख सकूँ, न लिख सकूँ
पर मैं इतना तो कर ही जाऊँगा
माँ, माँ और माँ तो ज़रूर लिख पाऊँगा
माँ पर लिखने का सपना
माँ लिखकर तो पूरा कर ही जाऊँगा। 

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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