इल्तिजा है मेरी - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी

इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर
रू-ब-रू हो जा अब तूँ मेरे
आके मुझसे मुलाक़ात कर

याद आता है तूँ
तो सताता है तूँ
ख़्वाब में ही बस अपना
बताता है तूँ
आ जा तूँ रू-ब-रू
और कभी भी न जा
मैं तुझे ही देखता रहूँ रातभर 
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर

गीत पावन है जो मनभावन सा है
प्रीत का हर मौसम सावन सा है
सूखा सा पड़ गया है प्रीत के खेत में
सींचने के लिए थोड़ी बरसात कर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर

प्रेम के दरमयान दिल धड़कता रहा
तूँ रू-ब-रू था मेरे दिल तड़पता रहा
मैं बहाना बना दूँ तो चल जाएगा
पर दिल चाहता है तेरा साथ भर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos