इक गुलाल की पुड़िया - गीत - डॉ॰ मान सिंह

बातें ख़ूब रंगीली होंगी
उसकी सभी सहेली होंगी,
जाने किनके लिए सभी ये
इक अनबूझ पहेली होंगी।
इठलाती-इतराती वो है, इक जादू की पुड़िया।
अब भी उसके लिए रखी है वो गुलाल की पुड़िया॥1॥

फागुन की सब मस्ती होगी
प्रेम भरी हर बस्ती होगी,
लेकिन दूर नदी में यारा
भँवर में अपनी कश्ती होगी।
बस यादों में तैर रही होगी दिल की वो गुड़िया।
अब भी उसके लिए रखी है वो गुलाल की पुड़िया॥2॥

चारों ओर फुहारें होंगी
मस्ती भरी बहारें होंगी,
अपनी आँखों में लेकिन बस
खारी-खारी धारें होंगी।
क्या यादों में लाती होगी मुझको मेरी गुड़िया?
अब भी उसके लिए रखी है वो गुलाल की पुड़िया॥3॥

डॉ॰ मान सिंह - जनपद, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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