मानव तूने भूखंड बाँटे
बाँटे सब नदियाँ नाले,
मानव को मानव न समझा
भ्रम कितने ही मन में पाले।
मैं बादल हूँ नील गगन का
मुझको बाँटो तो मैं मानू,
है कितना बलशाली आख़िर
देख रहा है तुझको भानू।
मैं मदमस्त हवा हूँ मानव
मुझको भी तुम बाँट दिखाओ,
हर तन को मैं छू कर जाती
मेरा रूप अछूत बताओ।
कल-कल करता बहता जल हूँ
रोक सको तो रोक दिखाओ,
हो तेरा ही शासन मुझ पर
ऐसा भी एक बाँध बनाओ।
श्रेष्ठ प्राणी होकर भी तुम
सब बिखरे-बिखरे रहते हो,
यह काला है, वह गोरा है
जाति-वर्ण के दुख सहते हो।
हम वाहक है सब समता के
हम करते कोई भी भेद नहीं,
सबको देखें एक दृष्टि से
मन में कोई भी खेद नहीं।
गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)