अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ेलुन
तक़ती : 1222 1222 22
तुम आई ना तुम्हारा ख़्वाब आया,
याद मे तेरी अश्क बे'हिसाब आया।
ज़िंदगी ने हमसे सवाल बहुत किए,
ज़ुबाँ पर मगर नहीं जवाब आया।
यूँ तो रश्क बहुत है मुझे उल्फ़त से,
मगर तोहफ़ा ये नज़र नायाब आया।
बेख़ुदी के आलम मे ना जाने क्यूँ,
हर कोई शख़्स नज़र ख़राब आया।
ग़म-ए-हाल अपना किसको सुनाता,
मर्ज़-ए-मुहब्बत में जाम-ए-शराब आया।
नज़र-ए-इनायत हुई कुछ इस तरह से,
जैसे 'जैदि' के हक़ मे सवाब आया।
एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि' - बीकानेर (राजस्थान)