सर पर शोभे मोर मुकुट,
कानों में शोभे कुण्डल,
पीले वस्त्र में चमक रही,
इनकी प्रतिमा उज्ज्वल।
हाथों में मुरली,
होंठों पर मुस्कान,
अनुपम लीला,
अपूर्व महान।
ना डिगा पाए शरद इन्हें,
ना पिघला पाए ग्रीष्म,
श्यामल वर्ण के कारण ही,
नाम पड़ा है कृष्ण।
देवकी ने इनको जनम दिया,
और पाला यशोदा मैया ने,
सबके मन को हर कर,
आकर्षित किया कन्हैया ने।
इनकी महिमा को, इनकी लीला को,
धरती आकाश ने माना है,
पीताम्बर कहो, कृष्ण कहो,
लल्ला चित्तचोर ये कान्हा है।
आराधना प्रियदर्शनी - हज़ारीबाग (झारखंड)