ग़रीबी - कहानी - पुश्पिन्दर सिंह सारथी

माँ जब मैं शाम को फ़ैक्ट्री से घर आता हूँ तो रास्ते मे बहुत सारे पार्क मिलते है उस पार्क मे मेरे उम्र के बच्चे खेलते है। मेरा भी मन होता है खेलने का आख़िर आप मुझे क्यूँ नहीं खेलने देती हो?

माँ चुप रहती है और बोलती है बेटा मे तुम्हारे लिए खाना बना देती हूँ। हाथ मुँह धो कर खाना खा लेना।
रोहन- माँ मेरी बात का जबाब दो...
माँ- बेटा काम कर लूँ सारा तब बताऊँगी।
रोहन- ठीक है माँ। पता है माँ आज मेरी फ़ैक्ट्री में मालिक का छोटा बेटा स्कूल से आया था वो बहुत अच्छे कपड़े और जूते पहनें था। माँ ये स्कूल क्या होता है?

माँ रोहन की बातें सुनती रहती है। लेकिन जवाब किसी बात का नहीं देना चाहती।
वो जानती है कि रोहन की वजह से घर चलता है। उसके लिए रोहन ही सब कुछ है।

माँ- रोहन... खाना खा ले। बना दिया है मैंने।
रोहन- आया माँ...।

रोहन खाना खा कर फिर अपनी माँ से पूछता है लेकिन माँ उसकी किसी बात का जवाब नहीं देती।
वो सोचती है कि मे 10 वर्ष के अपने बेटे को क्या जवाब दूँ।

माँ- रोहन रात हो गई है कल काम पर भी जाना है सो लो अभी कल बात करते है।
रोहन- ठीक है माँ।

रोहन की माँ पूरी रात ये सोच कर जागती रही कि कल जब रोहन सो कर उठेगा तो उसे मे क्या बताऊँगी।

माँ- रोहन सुबह हो गई उठ जाओ काम पर भी जाना है मैंने खाना बना दिया है।
रोहन- ठीक है लेकिन आज आप मेरी बात का जवाब दो। 
माँ- रोहन शाम को आना तब मे आपको बताऊँगी। ऐसा कहकर रोहन को उसकी फ़ैक्ट्री भेज देती गई।

रोहन की माँ बहुत परेशान है और। सोचने पर मजबूर है कि वो उसे क्या बताए। रोहन ने ज़िद पकड़ रखी है।

शाम होते ही रोहन फ़ैक्ट्री से अपने घर जाता है और रास्ते मे पार्क में खेलते हुए बच्चो को देखता है फिर मन मे सोचता है कि आज मे माँ से पूछ कर ही रहूँगा।

माँ- आ गया रोहन। हाथ मुँह धो लो फिर भोजन करना।
रोहन- माँ मे आज खाना तभी खाऊँगा जब आप मेरी बात का जवाब दोगी।

माँ- रोहन पहले खाना खाओ तब।
रोहन- नहीं माँ पहले जवाब।
माँ- ठीक है रोहन। अब तुम कल से काम पर मत जाना मैं तुम्हारे स्कूल में पढ़ने की बात कर आई हूँ अब तुम ख़ूब पढ़ना और बच्चो के साथ खेला करना।

रोहन ख़ुशी से झूम उठा और पूछा- माँ क्या सच मे कल से स्कूल जाऊँगा।
माँ- हाँ बेटा। अब खाना खा लो।
रोहन- खाना खा कर मन ही मन बहुत ख़ुश होता है और  माँ उसकी ख़ुशी को देखकर प्रसन्न होती है।

अगले दिन रोहन स्कूल की ड्रेस पहन कर स्कूल जाता है। अब रोहन अन्य बच्चो की तरह पढ़ता-खेलता है।

एक दिन रोहन स्कूल से घर आता है तो देखता है कि उसके घर मे ताला लगा हुआ है। रोहन परेशान होता है कि माँ नहीं है घर पर। वो अपने पड़ोसियों से पूछता है तो कोई उसकी बात का जवाब नहीं देता।
बेचारा रोहन परेशान होकर अपने घर के दरवाज़े पर बैठ जाता है और अपनी माँ का इंतज़ार करता है। शाम हो गई लेकिन माँ नहीं आई। अब रोहन बहुत उदास हो गया। उसे भूख भी लग रही थी। तभी उसकी माँ रिक्शे से आती हुई दिखाई दी।

रोहन- माँ ये सब कैसे हुआ?
माँ- बेटा ताला खोलो।
रोहन ताला खोलता है और अपनी माँ को अन्दर ले जाता है।
रोहन- माँ कैसे लगी आपको चोट?
माँ- बस ऐसे ही लग गई।
रोहन- माँ सच सच बताओ आप?
माँ- बेटा जब मैं सुबह अपने काम पर गई तो एक रिक्शे वाला मुझे टक्कर मार गया और मे गिर पड़ी।
रोहन- माँ आप काम पर क्यूँ जाती हो मैं जाता था ना पहले।

माँ रोहन की बात सुनकर रो पड़ती है। 
रोहन- माँ आप रो क्यूँ रही हो मुझे बताती क्यूँ नहीं हो कोई बात।
माँ- बेटा रोहन तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।

रोहन इतना सुनकर सब समझ जाता है कि बिना पैसे के पढ़ाई नहीं होती।
रोहन अगले दिन फिर अपनी उसी फ़ैक्ट्री मे जाता है।

मालिक- रोहन काफ़ी दिनों बाद आए हो बिना बताए कहा चलें गए थे?
रोहन- जी मालिक मेरा दाख़िला मेरी माँ ने स्कूल में करा दिया था तो मैं पढ़ने जाने लगा था।
मालिक- फिर आज अचानक काम की तलाश मे क्यूँ आए हो? क्या स्कूल छोड़ दिया?
रोहन- जी मालिक। पैसे की तंगी और माँ की हालत देख कर मैंने स्कूल छोड़ दिया है।
मालिक - अच्छा कोई बात नहीं लेकिन ये बताओ क्या तुम पढ़ना चाहते हो?
रोहन- जी मालिक।
मालिक- तो आप कल से स्कूल जाना और स्कूल से छुट्टी होने के एक घंटे बाद मेरी फ़ैक्ट्री मे काम करने आ जाया करना।
रोहन- मालिक मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मैं पढ़ाई कर सकूँ। आपकी फ़ैक्ट्री से जितना मिलता है उससे मेरे घर का ख़र्च चलता है।
मालिक- कोई बात नहीं रोहन स्कूल की फीस मे आपको दिया करूँगा बस तुम स्कूल के समय पढ़ाई करो और खाली समय फ़ैक्ट्री मे काम। तुम्हारा घर भी चल जाएगा और पढ़ भी लोगे।

रोहन इतना सुनकर बहुत ख़ुश होता है और घर जाकर अपनी माँ को बताता है।
माँ रोहन को गले लगाकर बहुत ख़ुश होती है कि अब उसका रोहन काम भी कर लेगा और पढ़ाई भी।

"भारत के 35% बच्चे आज भी ग़रीबी के कारण पढ़ नहीं पाते। क्योंकि शिक्षा आज के समय मे मंदिर नहीं व्यापार बन गया है।"

पुश्पिन्दर सिंह सारथी - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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