इतिहास के पन्नों में गुम नायक क्षितिज मुखोपाध्याय - आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

स्वाधीनता का 75 वर्ष मनाया जा रहा है। लोग एक-दूसरे को बधाइयाँ दे रहे हैं। मैनें भी दिया। लेकिन देश के वीर सपूतों को याद करने के क्रम में आज मैं पहुँच गई अपनी ननिहाल के छोटे से गाँव में। पश्चिम बंगाल के बाँकुड़ा जिले में स्थित गाँव का नाम- इछारिया, थाना- सोनामुखी, पंचायत- पांचाल।
उस छोटे से गाँव में एक मिट्टी का घर और उस घर में एक हँसता-खेलता सम्भ्रांत परिवार। परिवार स्व॰ आशुतोष मुखोपाध्याय (मुखर्जी) का। पत्नी स्व॰ मायालता देवी। तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र। स्व॰ आशुतोष मुखोपाध्याय रिश्ते में मेरे नानाजी स्व॰ बनमाली मुखोपाध्याय के चचेरे भाई थे जिनका जीविकोपार्जन का साधन मात्र दो-तीन बीघे खेत बचे थे। कतिपय कारणों से पिता की सारी ज़मीन-जायदाद बिक्री हो चुकी थी। इसलिए घर में घोर आर्थिक अभाव था। उनके मिट्टी का कच्चा मकान और टाँट वाली छत हटाकर पक्का मकान बनाने का सपना मात्र सपना ही रह गया था। उनके दिमाग़ में तीन-तीन बेटियों की ब्याह में होने वाले ख़र्चे के चिंता थी।

मेरे नाना जी जेनरल पोस्ट ऑफिस के पोस्टमास्टर थे इसलिए गाँव से बाहर शहर में रहा करते थे और महीने-दो-महीने में अपने गाँव आया करते थे और भाई आशुतोष मुखोपाध्याय को यथासंभव आर्थिक मदद किया करते थे।
अब मैं आगे कुछ लिखने से पहले आशुतोष बाबू के बेटे का नाम का उल्लेख करना ज़रूरी समझती हूँ। बेटे का नाम- क्षितिज मुखोपाध्याय। 
स्वभाव से शांत और शालीन क्षितिज घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका प्यारा था। वह अपनी माता-पिता का लाडला था। बहनें भी उसपर अपनी जान लुटाया करती थी।

क्षितिज जब बड़ा हुआ तो भारतीय सेना में योगदान देने की प्रबल इच्छा उसके मन में जगी और उसकी यह इच्छा भी पूरी हुई। घर वालों की इच्छा न थी कि वह सेना में जाए। रिश्तेदार भी इसके ख़िलाफ़ थे। सभी की इच्छा थी कि घर का इकलौता पुत्र घर में रहे लेकिन ऐसा न हुआ।
उस वक़्त देश में स्वाधीनता संग्राम की लहर थी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की बुलंद आवाज़ देश दसों दिशाओं में गूँज रही थी "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।"
भारत की स्वाधीनता के लिए सैकड़ों नवयुवकों ने ख़ून से हस्ताक्षर करके नेताजी को दे दिए और 'आज़ाद हिंद फौज' में भर्ती हो गए। क्षितिज कहाँ पीछे रहनेवाला था। उसने भी 'आज़ाद हिंद फौज' में अपना नाम लिखा लिया और अपना घर-परिवार से दूर भारत माता की परतंत्रता की बेड़ियों को काटने के लिए यथासंभव प्रयास करने लगा।
इधर घर वाले उसकी इस कृत्य से बिल्कुल अनभिज्ञ थे।पिता आशुतोष बाबू अपने बेटे की प्रतीक्षा में इस दुनिया से चल बसे थे। बहनों की शादी हो चुकी थी और माँ पलकें बिछाए बैठी थी। उनके रिश्तेदारों को भी इतना ही पता था कि क्षितिज सेना में बहाल है। कहाँ है और किस हाल में है किसी को भी मालूम नहीं था। मेरे नाना जी जब भी गाँव जाते तो क्षितिज का हाल-चाल पूछते मगर क्षितिज घर पर कोई चिट्ठी-पत्री भेजना बिल्कुल बंद कर चुका था। इसलिए नानाजी को निराश होकर शहर वापस लौट जाते।

एकदिन की बात है। मायालता देवी दोपहर का भोजन से निबटकर बरामदे में बिछी खाट पर लेटकर आराम कर रही थी कि अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। वह खाट से उठकर दरवाज़ा खोलते ही डाकिया खड़ा मिला। डाकिया उन्हें एक चिट्ठी थमाते हुए चल दिया।
मायालता देवी अनपढ़ थी। चिट्ठी किसकी है और कहाँ से आई है, यह भी उनको पता न चला। वह तुरंत अपने रिश्ते के देवर के पास गई और चिट्ठी के बारे में जानने की उत्सुकता ज़ाहिर की।
चिट्ठी क्षितिज का था जिसमें उसके मलया (आधुनिक मलेशिया) में बंदी होने की बात लिखी गई थी। बांग्ला भाषा में स्पष्ट लिखी हुई थी 'आमी नेताजीर साथे मालये बंदी आछी।' अर्थात 'मैं नेताजी के साथ मलया में बंदी हूँ।'

मायालता देवी दुखी मन से अपने घर वापस लौटी और उस चिट्ठी को टाँट की छत पर खोंस कर रख दिया और मेरे नानाजी के गाँव आने का इंतज़ार करने लगी। यह बात समुचें गाँव में फैल गई। हर कोई कहता कि क्षितिज जल्द ही रिहा होकर घर वापस आएगा। मायादेवी को उनकी बातों से थोड़ी राहत मिलती।
इधर नाना जी को पोस्ट-ऑफिस के काम में काम की अधिकता के कारण छुट्टी नहीं मिली। लगभग 3 महीने के बाद जब छुट्टी मिली तो नानाजी यथापूर्व अपने गाँव पहुँचे।गाँव पहुँचते ही उन्हें क्षितिज की ख़बर मिली। उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया कि चिट्ठी पर लिखी गई पता के माध्यम से क्षितिज से सम्पर्क करना संभव है और यही सोचकर उन्होनें सबसे पहले भाभी मायालता देवी के घर पहुँचे। मायालता देवी को नाना जी का ही इंतज़ार था अबतक। हाल-चाल पूछने के बाद नानाजी से सोत्साह चिट्ठी देखने की इच्छा ज़ाहिर की। मायालता देवी लपककर टाँट की छत पे खोंसी हुई चिट्ठी लेने गई मगर हाय दुर्भाग्य! लगभग पूरी चिट्ठी दीमक चट्ट कर चुका था। उसपर लिखी गई पता का नामोनिशान नहीं था। चिट्ठी के दाहिने ओर कई वाक्य पढ़ने योग्य बचा था।
पते वाली जगह मिट्टी में तब्दील हो चुका था।
नाना जी सन्न रह गए। मायालता देवी भी निःशब्द हो चुकी थी।
आगे नानाजी के बहुत प्रयास के बाद भी क्षितिज की कोई ख़बर नहीं मिली।
इसके बीच ख़बर मिली कि क्षितिज के बड़ी बहन को एक पुत्र रत्न पैदा हुआ जिसके गले की नली कटी हुई थी। बच्चा जन्म लेने के कुछ ही मिनटों के बाद अंतिम साँस त्याग दिया। गाँव के लोग अंधविश्वासी तो थे ही, फलस्वरूप मन में ठान लिया कि क्षितिज की सच्चाई को दर्शाने के लिए ही भगवान ने नवजात को क्षणिक देर के लिए अपनी बड़ी दीदी के घर में भेजा था। उन्होनें अनुमान लगा लिया कि शायद क्षितिज की मृत्यु दुश्मनों द्वारा उसके गले की नली काटने से हुई होगी!
मायालता देवी यही ध्रुव सत्य मानकर कई वर्षों तक जीवित रही, उसके बाद चल बसी।

बात जो भी हो, आगे लिखने को कुछ रहा नहीं।
कुछ ही वर्षों में नानाजी गुज़र गए। एक-एक करके सारे रिश्तेदार गुज़र गए। जो थे उन्हें क्षितिज के बारे में कभी कुछ पता नहीं चला।
आज स्थिति ऐसी है कि क्षितिज का एक भी सबूत किसी के पास मौजूद नहीं है। वह कहाँ पदस्थापित था? आज़ाद हिंद फौज में कब और कैसे गया? नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ उसकी कब मुलाक़ात हुई? मलया में बंदी होने के बाद उसका क्या हाल हुआ? किसी को भी नहीं मालूम।
आज भी इछारिया गाँव है। मिट्टी का घर तो नहीं रहा मगर उसके अवशेष बचे हुए हैं। क्षितिज के रिश्तेदार हैं। क्षितिज की यादें समूचे गाँव में बिखरी पड़ी है लेकिन भारत की स्वाधीनता संग्राम में क्षितिज के योगदान देने की या शहीद होने की बिंदुमात्र भी कोई सबूत नहीं है।
बस, क्षितिज एक कहानी का पात्र होकर रह गया। स्वाधीनता का गुमनाम नायक क्षितिज मुखोपाध्याय (मुखर्जी)।

इस स्वाधीनता दिवस के मौक़े पर आज़ादी के उन दीवानों को मोदी सरकार याद कर रही है जो आज़ादी के बाद इतिहास के पन्नों में गुम हो गए। मोदी सरकार ऐसे नायकों को सम्मानित कर रही है। इस कड़ी में सरकार गुमनाम नायकों के स्वाधीनता संग्राम में योगदान को रेखांकित कर रही है लेकिन पश्चिम बंगाल के बाँकुड़ा जिला स्थित इछारिया नामक गाँव का क्षितिज मुखोपाध्याय एक ऐसा गुमनाम नायक है जो सबूतों के अभाव में सदा के लिए गुम ही रह गए। नाम की सार्थकता है शायद- क्षितिज, जो बहुत दूरी पर आकाश और धरती को जोड़ती हुई नज़र तो आती है मगर जिसकी सीमा अंतहीन है।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos