अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
तक़ती : 22 22 22 22 22 2
सब की नज़रों से गिर जाना क्या होता है,
बोलो गिरकर फिर उठ पाना क्या होता है।
कैसे कहा गिरा कोई सबकी नज़रों से,
कहो ज़रा इसका पैमाना क्या होता है।
गिरता वो है जो उड़ता है बिना पंख के,
हम क्या जाने यूँ उड़ जाना क्या होता है।
ख़ुद को सब कहकर कहते वो अपने मन की,
बोलो ऐसे बात बनाना क्या होता है।
भटक रहे जो तन के सुख की ख़ातिर जग में,
क्या जाने मन का सुख पाना क्या होता है।
देह नहीं कवि रूह रूह ही अपनी दुनिया,
सब क्या जानें यूँ जी पाना क्या होता है।
जो धरती पर थे अब भी हैं धरती पर ही,
उनसे सीखो क़दम जमाना क्या होता है।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)