चंदन मैंने चूमना चाहा लिपटे व्याल हज़ार मिले।
अम्बर मैंने छूना चाहा जलते मुझे अंगार मिले।।
कुदरत की मैंने देखी है रीत निराली सी भाई।
फूलों को सहलाना चाहा कंटक मुझे प्रहार मिले।।
बंजारे सा घूमा करता मैं तो सारी दुनिया मैं।
घर में जब रहना चाहा शक करते मुझे दीवार मिले।।
रिंदों की बस्ती से अक्सर प्यासा ही मैं लौटा हूँ।
जब मस्ती में झूमना चाहा सदा मुझे बाज़ार मिले।।
गीत को जब मैं गाने बैठा आज अचानक से यूँ हीं।
संग में साज बजाना चाहा टूटे मुझे सितार मिले।।
पतझड़ पूरा बीत गया था जब मैं उपवन में पहुँचा।
मौसम चौमासे में देखो उजड़ी मुझे बहार मिले।।
कैसे हाल बताऊँ यारों तुमको अपनी क़िस्मत का।
मेरे अरमानों की डोली लूटते मुझे कहार मिले।।
कवि सुदामा दुबे - सीहोर (मध्यप्रदेश)