हँस लेते हैं - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

अरकान : फ़ेल फ़ऊलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
तक़ती : 21 122 22 22 22 2

चाहे जितने भी हों ग़म हम हँस लेते हैं।
पलक भले रहती हों नम हम हँस लेते हैं।।

दूरी में भी नज़दीकी के ख़्वाब देखकर,
ख़ुशी-ख़ुशी जीकर हरदम हम हँस लेते हैं।

बरस रही है मौत महामारी बन सब पर,
भले फ़िक्र का है आलम हम हँस लेते हैं।

मोरों का स्वर नहीं आज संकेत मेघ का,
बदल गया चाहे मौसम हम हँस लेते हैं।

यहाँ वहाँ सब बंद बची हैं केवल साँसे,
देख वक़्त पर छाया तम हम हँस लेते हैं।

दुखी सभी हैं हम भी तुम भी ये भी वो भी,
फिर भी ज़्यादा या कुछ कम हम हँस लेते हैं।

दुनिया में दुख इसके या उसके कारण है,
नहीं पालते कभी वहम हम हँस लेते हैं।

डरना मरने से बदतर है यही मानकर,
ज़िंदा रख अपना दमख़म हम हँस लेते हैं।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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