कैसी फैली महामारी - कविता - रविन्द्र कुमार वर्मा

मुँह पर मास्क लगा के चल रहे, बच्चें बुढ़े नर नारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

विधालय सब बन्द हुए, और लाइन लगी मेडिकल में।
ख़ौफ़ छा गया दुनिया में, भाई ना जाने क्या हो पल मे।।

मुश्किल में फँसी जान सभी की, कैसी है ये दुश्वारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

फिका कारोबार हो गया, ख़र्चा वो ही पुराना है।
बिल मोटे हैं होस्पिटल के, मुश्किल हुआ चुकाना है।।

जान के लाले पड़ जाएँ, जो अस्पताल हो सरकारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

खूब बिमारी फैल गई, पर लोग बाज नहीं आते हैं।
अपनी गफलत के कारण, घरवालों को मरवाते है।।

भरे पड़े शमशान, वहाँ भी भीड़ हो गई है भारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

बड़े बड़े देशों को भी, इस दहशत ने थर्राया है।
जनमानस की क्षती हुई, व्यापार ने गोता खाया है।।

बचना चाहे बच ना पाएँ, कितनी है जी लाचारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

ठीक सी हो गई थी पहले, अब फेज दुसरा आया है।
पहले से भी ज़्यादा, इस ज़ालिम ने अब दहलाया है।।

अब तो आकर तुम्हीं सम्भालो, हे गोवर्धन गिरधारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

मुँह पे मास्क लगा कर चल रहे, बच्चें बुढ़े नर नारी।
कठिन समय आया है लोगों, कैसी फैली महामारी।।

रविन्द्र कुमार वर्मा - अशोक विहार (दिल्ली)

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