जीवन के जटिल दोराहे पर,
हे प्रभु! उलझन सुलझा देना।
हानि-लाभ के चक्कर में,
भ्रम के अधीन जब हो जाऊँ।
है राह कौन सीधी-सच्ची,
सोचूँ पर समझ नहीं पाऊँ।
हे दीनबंधु! तर्जनी दिखा-
सब गलत-सही दिखला देना।।
बाज़ार भरा हो माया से,
मुझको हर वस्तु लुभाती हो।
रसना रटती हो राम-नाम,
पर उर में लोभ जगाती हो।
हे मायापति! माया समेट-
शाश्वत-नश्वर समझा देना।
कर्त्तव्य विमुख ना हो जाऊँ,
लख भव्य भयानक भवसागर।
छल दंभ द्वेष पाखंड झूठ,
जब लगने लगे सरस गागर।
हे अवधपति! अवधेश तनय-
सब साँच-झूठ बतला देना।।
डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)