रोशन सोनी "रोशी" - नई दिल्ली
अपनी ख़ातिर सजती हो - ग़ज़ल - रोशन सोनी "रोशी"
मंगलवार, मार्च 23, 2021
जब अपनी ख़ातिर सजती हो।
तुम कितनी अच्छी लगती हो।।
मेरी ख़ातिर सजना अब क्या,
तुम मुझको यूँ ही जचती हो।
मैं शीशा हूँ जिसके कोने,
बिंदी बनके तुम छिपती हो।
तुमसे बाहर मैं क्या देखूँ,
सब दिखता है, तुम दिखती हो।
लिखना जिसपे राधे राधे,
मोहन की तुम वो तख़्ती हो।
कुछ भी पहनो मुझको लगता,
तुम जोड़ा पहने चलती हो।
क्या चंदा तुम से है रौशन,
ये जलता है तुम दिखती हो।
मुझको 'रोशी' भाते हो तुम,
कहने से क्यों ये डरती हो।
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