होली - दोहा छंद - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"

नैना रतनारे हुए, अधर रसीले लाल।
छुईमुई गोरी हुई, हुए गुलाबी गाल।।

फागुन में हैं फाग के, रचे अनूठे छंद।
भ्रमर कली का पी रहे, मंद-मंद मकरंद।।

करे पवन अठखेलियाँ, कोयल गाए फाग।
होली के त्योहार में, फैला है अनुराग।।

आँखें पिचकारी हुईं, छोड़ें रस की धार।
अधर रसीले बोलते, बातें लच्छे दार।।

होली है सौहार्द का, और प्रेम का पर्व।
भारतीय इस पर्व पर, हमें सदा है गर्व।।

रस के गुब्बारे हुए, फूले-फूले गाल।
आँखें रसवंती हुईं, अधर हुए बाचाल।।

फूलों का रस घोल कर, मिला प्रीत का रंग।
गोरी डालै प्रेम से, मन में उठी तरंग।।

कलियों की पाँखें खुलीं, अति कोमल सुकुमार।
भौंरों से हैं हो गईं, उनकी आँखें चार।।

नव उमंग उत्साह का, यह पावन त्यौहार।
भाई चारा प्रेम का, करता है संचार।।

खुशियाँ बन कर उड़ रहा, रंग अबीर गुलाल।
मौसम भी नटखट हुआ, पल-पल करे बबाल।।

तन-मन में है प्रेम की, जागी नई उमंग।
अंग-अंग में खिल उठे, इन्द्रधनुष के रंग।।

श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल" - लहार, भिण्ड (मध्यप्रदेश)

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