अपने खून से जो सींचते हैं मातृभूमि को सदा,
ग़म न उनको था तनिक जान की परवाह का,
आग के शोलों में तप फ़ौलाद का सीना लिये,
जिए तो माँ भारती, मरे माँ भारती के लिए।
ऐसा नहीं की माँ नहीं थी बेटियाँ उनकी,
खिलखिलाते पिता की सुखद स्मृतियाँ भी थी,
आँख में आँसू थे उनके प्यार का सैलाब भी,
पर वतन की लत उन्हें थी, ज़ेहन में इंकलाब हीं।
रोती पत्नियाँ उनकी धरा पर गिर गयीं थी जब,
माँ भारती ने आँचल से आँसू पोंछ लिया सब,
गर्व से बोली बलिदान नहीं जायेगा व्यर्थ,
ऐ बेटियाँ ऐसे हीं जीवन का यहाँ होता है अर्थ।
बड़ी भाग्य से ऐसे चमन में फूल खिलते हैं,
क़िस्मत से ऐसे स्वर्ग के सब देव मिलते हैं।
उनके बलिदान पर मैं भी सदा मातम मनाती हूँ,
शहीदों की चिता की राख से आँचल सजाती हूँ।
विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)