नया दस्तूर - ग़ज़ल - मनजीत भोला

महोबत का तेरी तक़रीर में पैग़ाम होता है,
मगर सूबे में इस के बाद क़त्लेआम होता है।

नया दस्तूर है यारो नए दौरे-सियासत का,
यहाँ मक़तूल के सर पे कोई इल्ज़ाम होता है।

गटर में मर गया रमलू मगर हैरत हुई सुनके,
सुना तमग़ा सफाई का सचिन के नाम होता है।

खज़ाना ही नहीं सारा वतन अब दाँव पे रखदो,
बड़े मुज़रिम के सर पे गर बड़ा ईनाम होता है।

तजरबा है मिरा साक़ी मैं कैसे माँग लू तुझसे,
मना करते जो उनके हाथ में ही जाम होता है।

न जाने किन मुक़ामों पे हमें पहुँचा दिया तुमने,
नज़र गर तुम न आओ तो हमें आराम होता है।

मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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