उठो विवेकानंद बनो - कविता - विनय विश्वा

हे भारत के वीर सपूतों
उठो विवेकानंद बनो।
अपने भारत नीज को 
पहचानों तुम
उठो तब तक न रुको
लक्ष्य न जब तक पा लो तुम।
हे भारत के वीर सपूतों
उठो विवेकानंद बनों।।

अपनी संस्कृति पहचानों तुम
क्यों उलझ गए हो पश्चिम में
वेद, पुराण, उपनिषद की भाषा
क्या नहीं है तेरे मन मन्दिर में।
नीज भाषा नीज संस्कार
पहचानों तुम
तूफ़ानी संन्यासी की वाणी
अंतरतम में बसा लो तुम
अंतरतम में बसा लो तुम।
हे भारत के वीर सपूतों
उठो विवेकानंद बनों
उठो विवेकानंद बनों।।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos