मैं भूतल का भार - गीत - अनिल बेधड़क

निपट अमावस मेरा जीवन तुम हो भोर किरन।
परम अकिंचन काया से हो कैसे कृष्ण मिलन।।
कैसी मन में प्यास संजोए भटक रहा यह मन।
मृग मरीचिका के ही भ्रम में हारे कई वचन।
मैं मरूथल का गरम रेत तुम सावन घटा सघन।।
परम ...

मैं अभिशापित सा बना कहाँ कहाँ ना भटका।
और गुलो की बस्ती में भी काँटा बनकर खटका।
मैं चौराहे की धूल कहां तुम मंदिर के पूजन।।
परम ...

मेरे साथ किए हैं जग ने जीवन भर छल छंद।
इसीलिए ही रहे भक्ति के दरवाजे बंद।।
मैं हूँ जीवित लाश और तुम नित नूतन जीवन।।
परम ...

जो धुल जाए गंगाजल से मेरा हृदय नहीं।
चरण तुम्हारे बिना छुए मन अब तक अभय नहीं।
मैं भूतल का भार कहां तुम युग के संबोधन।।
परम ...

अनिल बेधड़क - शिकोहाबाद (उत्तर प्रदेश)

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