चितेरा-सा - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

मेरा-सा, पर तेरा-सा
हर पल नया सवेरा-सा।

रूह, रूह में समा गई
अब क्या तेरा-मेरा-सा।

लब चुप हैं, संकेत प्रबल
दिल मौनी का डेरा-सा।

अब तो लगे अमावस का
तम भी सदा उजेरा-सा।

प्यार आज अहसासों में
लगा रहा है फेरा-सा।

ख़्वाब-हक़ीक़त एक हुए
चिंतन हुआ चितेरा-सा।

कहना छोड़ो, समझो भी
प्रियतम, हुआ अंधेरा-सा।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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