ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)
चितेरा-सा - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
मंगलवार, जनवरी 05, 2021
मेरा-सा, पर तेरा-सा
हर पल नया सवेरा-सा।
रूह, रूह में समा गई
अब क्या तेरा-मेरा-सा।
लब चुप हैं, संकेत प्रबल
दिल मौनी का डेरा-सा।
अब तो लगे अमावस का
तम भी सदा उजेरा-सा।
प्यार आज अहसासों में
लगा रहा है फेरा-सा।
ख़्वाब-हक़ीक़त एक हुए
चिंतन हुआ चितेरा-सा।
कहना छोड़ो, समझो भी
प्रियतम, हुआ अंधेरा-सा।।
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