हादसे होकर हम से अकसर गुजरते रहे,
नज़र मे ओरों की हम बेशक बिखरते रहे।।
सोचते रहे वो, कि हम टूट के बिखर जाऐगे,
हौंसलो से हम मगर फिर भी निखरते रहे।।
संग-ओ-खार आऐगे, सफ़र मे जानते थे,
मंज़िल तक पंहुचेगे कैसे, अगर डरते रहे।।
गिर के उठना, फिर गिरना हिम्मत न हारी,
मिलेगी जीत ये सोच हम क़दम भरते रहे।।
सच की डगर पर चलते रहे बामु्शक्कत,
ना जाने क्यूं फिर भी उनको अखरते रहे।।
वक्त का तकाज़ा तुम भी तो देखो "जैदि",
हमे गिराते थे, वो खुद नज़र से गिरते रहे।।
लाल चंद जैदिया "जैदि" - बीकानेर (राजस्थान)