मुझको ना भूल पाओगे - कविता - शेखर कुमार रंजन

ज़ख्म सच में तुम्हें हैं, तो मलहम लगा दू तुझे
इससे पहले की कोई और नमक, लगा दे तुझे

हमदर्द बनकर गुजारी हैं जिंदगी मैने
सारे दर्द यू ना अकेले तू चुरा ले मुझसे।

जो दिया ज़ख्म फूल को, वो जालिम कौन सी है
बनाऊँ ज़ख्म की मरहम, वो तालीम कौन सी है

तुमने हर ज़ख्म अकेले आज सह तो लिया
बता दो मुझे क्यों ना कोई तकलीफ दिया।

सोचता था कि तू ऐसे ही भूल जाओगे
बिना अश्कों के ही तू मुझसे दूर जाओगे

ना इज़हार करती अपनी मोहब्बत की कभी
किसे पता था कि तू अब तक ना बदल पाओगे।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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