मेरा भारत महान - कविता - श्रीकान्त सतपथी

हे अमर राष्ट्र के अमर वीर
तू भारत को पुकार दे,
दया, धर्म, सत्कर्म से
अन्याय, पाप से मार दे
भारत के जन-जन में
तिरंगा ही तो प्राण हैं,
कण-कण का विश्वास 
हैं कि कर्म जीवन का 
त्राण हैं,
मानव मर्यादा भूले तो
रामायण का आवाहन है‌
धर्म अधर्म का भेद 
जानने को गीता का महाज्ञान है
दया धर्म सतभाव में
मानव का कल्याण हैं
हर धर्म-जाती का भारत 
में आदर और सम्मान हैं

"ऐसा है मेरा महान भारत"

श्रीकान्त सतपथी - सरायपाली (छत्तीसगढ़)

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