छोड़ आए - नज़्म - सलिल सरोज

कुछ किस्से और कुछ कहानी छोड़ आए
हम गाँव की गलियों में जवानी छोड़ आए

शहर ने बुला लिया नौकरी का लालच देकर
हम शहद से भी मीठी दादी-नानी छोड़ आए

खूबसूरत बोतलों की पानी से प्यास नहीं मिटती 
उस पे हम कुएँ का मीठा पानी छोड़ आए

क्यों बना दिया वक़्त से पहले ही जवाँ हमें,कि 
धूल और मिट्टी में लिपटी नादानी छोड़ आए

कोई राह नहीं तकती,कोई हमें सहती नहीं
क्यूँ पिछ्ले मोड़ पे मीरा सी दीवानी छोड़ आए

मन को मार के सन्दूक में बन्द कर दिया हमने
जब से माँ-बाप छूटे,हम मनमानी छोड़ आए

सलिल सरोज - मुखर्जी नगर (नई दिल्ली)

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