शायरी - सैयद इंतज़ार अहमद

मोती जैसे शब्द जिन्हें, मैंने सीखा बचपन में,
आज इन्हीं ने ताकत दी है,बात कहूँ जो है मन में।
~
कब ऐसा चाहा मैंने कि तुम दिन रात मुझे ही याद करो,
जब भी हो फुर्सत तुमको, कुछ पल मुझ पर बर्बाद करो।
~
तजर्बे जिंदगी के पाता हूँ,
फिर मैं कुछ दूर चला जाता हूँ,
लगती है जब भी कोई ठोकर मुझे,
पास अपनों को ही मैं पाता हूँ।

सैयद इंतज़ार अहमद - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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