रिश्तों के बीज - कविता - सौरभ तिवारी

रिश्तों में भूख भी होती है,
प्यासे रिश्ते  भी होते हैं।
रिश्तों में बसंत बहार भी है
इनमें पतझड़ भी होते हैं।
अहसासों की खाद मिले
प्रेम मेघ रस बरसाएं,
फिर रिश्तों के बीज
अंकुरित हो हरियाली फैलायें।
अपनेपन की गगरी भर कर
नित नीर उड़ेले मन माली
विश्वास की किरणें पड़ते ही
रिश्तों में बनती इक डाली।
जब रिश्तों के पौधों में 
समर्पण खाद मिलाते हैं,
स्नेह की फिर चटकें कलियाँ 
और फूल खिल जाते हैं।
रिश्तों के इस पौधे में
अहं का कीट न लग पाए।
स्वार्थ की न पनपे दीमक
विषबेल घृणा की न चढ़ पाए।
पौधे बढ़कर जब ये
हरे  वृक्ष बन जाएंगे,
खुशियों के पंछी बैठेंगे
करलव मधुर सुनाएंगे।
जतन जतन संरक्षण हो
ईर्ष्या ना  झुलसा पाये,
रिश्तों की रखवाली हो
मन बैर कुठार न चल पाए।
ये जीवन की पूंजी हैं
ये गुलशन सदा बचाना है,
सींच सींच स्नेह का पानी
जीवन को महकाना है।


सौरभ तिवारी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos