गम - कविता - शेखर कुमार रंजन

जमाने ने जमाने को,
जमाना सीखा दिया
एक हँसते खेलते बालक को,
रोना सीखा दिया।

सुबह तन्हा शाम तन्हा,
दोपहर भी तन्हाई में
बीतने लगी उसकी जीवन,
गमो की परछाई में।

क्या? गुनाह किया था उसने,
सजा जिसकी पाई है
जिसको हँसाता था उसने,
उसी ने रुलाई है।

खुशी की छाया में,
पलने वाली गुलाब में
गम की काँटे,
काफी निकल आई हैं।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos