था मैंने तेरा बिगाड़ा क्या? - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

ऐ! जगवालों ये दर्द हमारा ,
रो रोकर तुम्हे  सुनाती  हूँ ।

मैं गर्भवती  हथिनी निरीह ,
संसार त्याग अब  जाती हूँ ।

ऐ! मानव तू दानव निकला ,
केवल भू अधिकार तुम्हारा क्या ?

तूने क्यूँ मुझको मार दिया ,
था मैंने तेरा  बिगाड़ा क्या ?

गर्भस्थ शिशू के पालन हित,
मैं भूखी  कुछ थी  ढूंढ रही ।

बम रखकर फल मे खिला दिया ,
मैं तड़प नदी मे  कूद पड़ी ।

तब जलन मिटाने निज तन की ,
नदिया मे जाकर शरण लिया ।

फिर  कालदेव से  भेंट हुई ,
मुझको पीड़ा से मुक्त किया ।

मैं पानी तक पी ना पायी ,
इस कदर मनुज ने घात किया ।

बहु असह वेदना दर्द सही ,
अरु इस दुनिया को त्याग दिया ।

ऐ!मनुजों तुम थे सर्व श्रेष्ठ ,
हम सब  तो पशू कहाते हैं ।

पर इतनी नफरत धोखा तो ,
हम पशु भी नही रचाते  हैं ।

ये  कैसी तेरी दुनिया है ,
अब प्रभु से मुझको कहना है ।

ना जनम मिले अब धरती पर ,
उस  जग मे अब ना रहना है ।

ऐ जग वालों ये दर्द हमारा ,
रो रोकर तुम्हें सुनाती हूँ ।

मैं गर्भवती हथिनी निरीह ,
संसार त्याग अब जाती हूँ ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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