अरुणिम आभा हो पुनः - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

नवप्रभात   झकझोड़ता, आपद   नित  घनघोर।
कोरोना   ललकारता , मौत    खड़ी     चहुँओर।।१।। 

दिल्ली   की   हालत   बुरी , शासन नहीं विचार।
राजनीति    सतरंज    पर , महाराष्ट्र      लाचार।।२।।

भाग  रही  लिप्सित प्रजा , धन  अर्जन सम्मान।
जीओगे  तब  तो  सुलभ , रिश्ते  यश  अरमान।।३।।

अपने   खोते   जा    रहे , लाश  नहीं   पहचान।
जला   रहे   लाशें   इतर , क्या  जीवन  इन्सान।।४।।

लेखा  जोखा  मौत   का , छिपा  रही   सरकार।
अस्पताल     लाशें    नहीं ,  कोई      जिम्मेदार।।५।।

आवाहन     सरकार  की ,  संयम     बैठो   गेह।
कामगार     माने     नहीं , भागे      पैदल   देह।।६।।

आज    भयावह  त्रासदी  , कैसे   हो  प्रतिकार।
सोचे   पूरा   देश    अब , कोरोना     की   हार।।७।।

कठोर कदम निर्माण हो , प्रतिपालन अनिवार्य।
प्यारी है  यदि  जिंदगी , दूर स्वच्छ  नित  कार्य।।८।।

क्या महफ़िल क्या आशियाँ,सभी आज बेकार।
कंधे    देने   को    नहीं ,  अपने  भी  दो   चार।।९।।

मानवता   का काल   बन,  आया  है  अवसाद।
अब भी संभलो  रे मनुज, प्रकृति करो आबाद।।१०।।

जन्मों का सद्कीर्ति फल , मानव जीवन प्राप्त।
चलो     बचाएँ    जिंदगी , तभी   बनेंगे  आप्त।।११।। 

कुदरत का   ऐसा   प्रलय , लाखों   का  संहार।
छिन्न भिन्न निज कोख को,देख लिया प्रतिकार।।१२।। 

सृष्टि     रची  परब्रह्म  ने , बस मानव कल्याण।
वही हताहत   मनुज   से , कैसे  हो  फिर त्राण।।१३।।

उजड़  रहा  मानव  चमन, खुशबू  हीन निकुंज।
अरुणिम आभा हो पुनः , कुसमित  भँवरा गूंज।।१४।। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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