व्यवहार परिवर्तन - लेख - रुपेश कुमार

आजकल अधिकतर बच्चों में यह समस्या  देखने को मिल रही है कि वह अपने माता-पिता की बातों को बिल्कुल ही नहीं मानते है  इससे माता-पिता का चिंतित होना स्वाभाविक है , दरअसल होता यह है कि जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है वह अपने आसपास की चीजों के बारे में पूछना शुरू करता है वह जो देखता है ,वह जो सुनता है उसके बारे में वह जानने की कोशिश करता है यदि कोई माता-पिता या अभिभावक इनके इन जिज्ञासा को शांत करने में असमर्थ होते हैं तो बच्चों के मन में वह प्रश्न निरुत्तर ही रह जाता है वह इस प्रश्न को अन्य लोगों के पास लेकर जाता है और जो उनके प्रश्न का उत्तर दे पाता है उसकी नजर में वह व्यक्ति एक आदर्श रूप में स्थापित होता है अब वह व्यक्ति कैसा है, उसका चरित्र कैसा है, यह सभी चीजें बच्चों के आगे के भविष्य पर गहरा प्रभाव डालती हैंl जिस माहौल में बैठता है उस माहौल का प्रभाव उसके ऊपर लगातार होता ही रहता है और वह उसी माहौल के अनुरूप ढलने लग जाता है उसको उसी का आदर्श दिखाई देने लगता है फलस्वरूप वह उसी माहौल के जैसा बन जाता है।

गार्जियन को चाहिए कि वह अपने बच्चों में होने वाले परिवर्तन को देखने की कोशिश करें कहीं बच्चा किसी ऐसे विचारों के प्रभाव में तो नहीं आ रहा है जो उसके भविष्य के लिए ठीक नहीं ,अगर ऐसा पता चले तो तुरंत ही उसे उस माहौल से दूर करने की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो वह बच्चा उस माहौल के अनुरूप ही ढल जाता है जब वह उस माहौल का उसमें एक अमिट छाप बन जाएगी तो उसको वहां उसके दिमाग से उसको निकालना थोड़ा मुश्किल काम होता है जो आगे चलकर समस्या बढ़ा देता है।

अभिभावक को चाहिए कि वह इन सब बातों का ध्यान रखें अगर  इन सब बातों को ध्यान नहीं रखते हैं तो निश्चित रूप से वह अपने बच्चों के प्रति उदासीन है और वह उनके भविष्य के प्रति ला-परवाह है,इसलिए तो यह समस्या उत्पन्न हुई है l बच्चों के अभिभावक वास्तव में उनके केयरटेकर जैसा होते हैं वह उनके मालिक नहीं हो सकते हैं l बच्चे में आपके प्यार की भावना का अनुभव होना आवश्यक है , इससे उसको आपके नजदीक आने का मौका मिलता है जब वह आपके नजदीक होगा तो आप उनकी कमजोरियों को जान पाएंगे तदनुसार आप उसका हल ढूंढने की और  इससे दूर करने की कोशिश करेंगे बच्चों में ज़िद का होना एक हद तक सही है यह आपके प्यार को दर्शाता है परंतु  एक ही चीज को बार-बार करने की जिद करता हो तो यह ठीक नहीं यहां पर नियंत्रण की जरूरत पड़ती है।

आजकल के बच्चे परिवार से कम समाज से ज्यादा सीखते हैं अर्थात वह आजकल अपने दोस्तों से ज्यादा सीखने लगता है दोस्तों की जरूरत कब पड़ती है जब आपके प्यार में कमी होती है तब वह हर प्रश्न का उत्तर अपने दोस्तों से खोजने की कोशिश करता है और यह जरूरी नहीं कि उसके दोस्त भी उतने मैच्योर हो उतने समझदार हो जो उनको सही तरीके से उसके प्रश्नों का उत्तर दे सके उसके पास जितने इंफॉर्मेशन जितनी जानकारी होती है वह उसको दे देता है फलस्वरूप बच्चों में यह धारणा बन जाती है कि जो जो हमारे दोस्त ने दिया है वह सही है हमारे घर के लोग जो उत्तर देंगे या दे सकते हैं वह गलत हो सकता है इस प्रकार आपके और आपके बच्चों के बीच की दूरी बढ़ती चली जाती है और यह दूरी 1 दिन एक भयानक रूप ले लेती है जब आपके हाथ से सब कुछ निकल गया रहता है , तब यह कहावत चरितार्थ होती हुई दिखाई देती है "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत"।
इसलिए समय रहते बच्चों के व्यवहार पर बच्चों के चाल चलन पर बच्चों के बातचीत करने के तरीके पर ध्यान देना चाहिए और उनकी हर एक एक्टिविटी को हर एक क्रियाशीलता को देखना चाहिए किस दिशा में आगे बढ़ रहा है यदि आपकी बातों को नहीं मानता है आप से दूर होने की कोशिश करता है कोई ना कोई है जो उसके नजदीक है उसके दिल के करीब है, तब आपको उसके पास भावनात्मक संबंध बनाने की कोशिश करनी पड़ेगी जब तक बच्चों और आपके बीच भावनात्मक संबंध नहीं बनेगा तब तक वह आपकी बातों को नहीं मानेगा आपको इसके लिए आप के प्रति उसका विश्वास हासिल करना पड़ेगा फिर उसके विश्वास को हासिल करने के बाद उसके अंदर जो विश्वास बैठ गया है उसको हटाना पड़ेगा जैसे ही आप विश्वास को बदलेंगे तो उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देगा जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

अगर हम किसी बच्चे के व्यवहार को चेंज करना चाहते हैं तो पहले उसके साथ हमने एक भावनात्मक संबंध बनाने पड़ते हैं जिससे उसका आपके प्रति विश्वास पैदा होता है जब आप के प्रति विश्वास पैदा हो जाता है तब आप उसके बिलीफ सिस्टम को जान सकते हैं फिर उसके साथ बिलीफ सिस्टम को परिवर्तित कर सकते हैं जब आप इस सिस्टम को परिवर्तित करेंगे तो ऑटोमेटेकली उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देगा दरअसल हम उल्टा काम करते हैं अगर बच्चा कुछ गलत काम कर रहा है तो उसको रोकते हैं, टोकते हैं , फिर ठोकते हैं इसके बावजूद भी बच्चों के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है क्योंकि बच्चा को रोकने से कुछ देर तक तो रुक जाएगा लेकिन जैसे ही उसको माहौल मिलेगा वह वापस उस व्व्यवहार पर वापस आ जाएगा रोकने से भी वही होता है और ठोकने से उसका प्रभाव कुछ समय तक रहता है फिर भी जब भी उसको माहौल मिलेगा तो वह वापस अपने व्यवहार में वापस आ सकता है ,इसलिए रोक -  टोंक - ठोक किसी व्यवहार को बदलने का स्थाई तरीका नहीं है यह अस्थाई तरीका हो सकता है यह कुछ समय तक तक प्रभावी रह सकता है परंतु जब तक उसके बिलीफ सिस्टम में परिवर्तन नहीं होगा तब तक उसके व्यवहार में परिवर्तन आपको नहीं दिखाई देगा  तो बिलीफ बदलना पड़ेगा और बिलीफ बदलने के लिए आप को बच्चों का साथ इमोशनल अटैचमेंट में जाना पड़ेगा जब तक बच्चा विश्वास  नहीं करेगा जब तक आपके साथ भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ेगा तो आपकी बातों को नहीं मानेगा जब तक आपकी बातों को नहीं मानेगा तो वह विश्वास पात्र नहीं बन सकता है वह आप पर विश्वास ही नहीं करेगा आपकी बातों पर यकीन ही नहीं करेगा , इसीलिए यह बहुत जरूरी है है कि बच्चों के साथ भावनात्मक संबंध बनाए जाए।

रुपेश कुमार
बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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