मंदिरी की बात हो ना मस्जिदी की बात हो - ग़ज़ल - मनजीत भोला


मंदिरी की बात हो ना मस्जिदी की बात हो
मज़हबों को भूलकर अब आदमी की बात हो

हाथ में अलगू तुम्हारे फैसले की है कलम 
अहमदों की बिस्तरी की तश्तरी की बात हो

देवताओं ने दिया क्या आज तक हमको भला
भोग की चर्चा नहीं अब भुखमरी की बात हो

जा चुका मक़तूल तो फ़ानी जहां को छोड़कर
जिसमें खंज़र था छुपा उस आस्तीं की बात हो

मुन्सिफों मज़लूम की बस एक ही फरियाद है
की गई सदियों तलक उस ज़्यादती की बात हो

आसमां के ओ सितारे पग ज़मीं पर टेकले
इक यही रस्ता बचा तुझसे किसी की बात हो

सुन चुके हैं दास्तां मंज़र नहीं देखा मगर
आँख से 'भोला' तुम्हारी जब नमी की बात हो


मनजीत भोला
कुरुक्षेत्र, हरियाणा

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