दोस्तों मुझे देखकर हैरान ना हो - कविता - चीनू गिरि गोस्वमी


दोस्तों मुझे देखकर हैरान ना हो

मै इश्क़ में नहीं हुं ,
                 बल्कि इश्क़ मुझमें है।
मैं सुखी नदी नहीं हुं,
                 ममता का समुद्र मुझमें है।
मै कोई गूंगी नहीं हुं ,
                  संस्कार जिंदा मुझमें है।
मैं छोटी बच्ची नहीं हुं,
                  मगर बचपना मुझमें है।
मैं बात बात पर रोती नहीं हुं,
                  हँसने का हुनर मुझमें है।
मैं लोगो से मिलती नहीं हुं ,
                   क्योंकि महफ़िल मुझमें है।
मैं बातें किसी से करती नही हुं,
                   लिखने का हुनर मुझमें है।
मैं कोई शायर नहीं हुं,
                   शायराना अन्दाज मुझमें है।


चीनू गिरि गोस्वमी
देहरादून उत्तराखंड

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