झूठ को सच हमेशा बताना पड़ा - ग़ज़ल - बलजीत सिंह बेनाम


झूठ को सच हमेशा बताना पड़ा
फ़र्ज़ यूँ भी बशर का निभाना पड़ा

आपकी बज़्म में लौटने के लिए
हर क़दम क़ीमतों को बढ़ाना पड़ा

ज़िंदगी के सभी सुर समझ आ गए
प्यार के राग को भूल जाना पड़ा

इक सुहागन को जीवन ही सारा अगर
एक विधवा के जैसे बिताना पड़ा

बेसबब गर्व का खामियाज़ा यही
सर झुकाया नहीं सर कटाना पड़ा

बलजीत सिंह बेनाम
103/19 कोर्ट कॉलोनी
हाँसी (हिसार)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos