संदेश
दीदी - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"फ़ोन उठाओ देवराज!" "दीदी, कुछ कार्यों को लेकर अभी व्यस्त हूँ।" "दीदी नहीं कहा करो।" देवराज साश्चर्य पूर…
बेलपत्र - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"कितना कष्ट होता है जब जीवन विकल्पहीन निभने की अनिवार्यता माँगे" बारह वर्षीय चारु की माँ अपने घर सात साल बाद आई सखी माधुरी क…
संध्यावंदन - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"बहुत ही बकवास! दिमाग़ से पैदल है क्या एंकर, एक ही बात को बार बार दोहराता है। मुझे एच॰ओ॰डी॰ का फ़ोन नहीं आता तो यहाँ महत्वपूर्ण यज्…
समझाइश - बघेली लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
मौसी केर बियाह के उराओ म परदेस म पढ़त दीनू चार रोज़ पाछेन आइगा। चार रोज़ आगे बियाह होय का हबै पर दीनू का रौनक नहीं देखान। ओसे रहा नहीं ग…
ड्यूटी की ब्यूटी - लघुकथा - प्रमोद कुमार
पिछले चुनाव का यात्रा वृतांत सुनकर ही मिश्रा जी ने इस बार संपन्न होनेवाले पंचायत चुनाव में पिताजी का नाम चुनाव ड्यूटी से हटवाने का फ़ैस…
क्या वह दोषी है? - लघुकथा - डॉ॰ सुनीता श्रीवास्तव
“अब जाकर घर आ रही हैं…!! तुम्हारे कारण माॅं चल बसी, एक भी फ़ोन नहीं उठाया तुमने?”- उत्तम (राशि का पति) भरी भीड़ में सबके सामने राशि पर …
कब तक? - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
तुम रो रहे हो कुशाग्र! पर किसलिए? अकेले यूँ रोना अच्छा नहीं, यह करके तुम मेरे साथ भी धोखा कर रहे हो। कुशाग्र कुन्दन को आश्चर्य भरी नज़…
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