नंदनी खरे 'प्रियतमा' - छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
हे ईश्वर! - कविता - नंदनी खरे 'प्रियतमा'
मंगलवार, जून 03, 2025
हे ईश्वर!
यदि क़िस्मत जैसा कुछ वास्तव में होता है,
तो नाइंसाफ़ी बहुत की है तुमने।
तुमने क़िस्मत के मामले में,
किया है समता के अधिकारों का हनन।
तुमने कुछ को ऊँचे पर्वत दे दिए है,
और कुछ को दिया है गहरा कुआँ।
हे ईश्वर!
तुमसे अधिकार माँगने का पूरा अधिकार है मुझे,
यूँ तुम्हारा दिया सब स्वीकार है मुझे।
पर तुम ही बताओ,
क्यूँ नियति मुझे देते देते ख़ुशियाँ रख लेती है वापस
क्या मेरी छोटी-छोटी ख़ुशियाँ भी–
नियति के नियमों के विरुद्ध है।
हे ईश्वर!
क्यूँ बड़प्पन और बड़ा होता जा रहा है,
और क्यूँ छोटा वहीं खड़ा है।
मैने भाग्य, सौभाग्य जैसी बातों को कभी नहीं स्वीकारा
पर अब समय मुझे मजबूर कर रहा है।
मै भाग्यवादी नहीं होना चाहता प्रभु!
मगर तुम बताओ,
बिना फिसले, मैं पीछे रह गया जन्म से,
और बिना चले कोई बहुत आगे निकला जन्म से,
बिना कुछ किए आगे निकलना!
बिना रुके पीछे ही छूट जाना,
क्या इसे क़िस्मत ना कहूँ,
हे ईश्वर!
अब तुम ही बताओ,
क्या कहूँ?
तुमसे तुम्हारा साथ माँगने का पूर्ण अधिकार है मुझे,
क्या तुम्हारा कर्तव्य नहीं बनता कि
तुम भी मुझे सँवारो।
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