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पैसा बोलता है - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | पैसे पर दोहे
पैसा बोलता है - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | पैसे पर दोहे
सोमवार, जून 02, 2025
पैसा बोलता दुनियाँ, पैसा ही नवरंग।
रिश्ते नाते मान यश, बिन पैसे बदरंग॥
पैसे ही ऊँचाइयाँ, पैसे ही सम्मान।
पैसों के महफ़िल सजे, पैसा ही भगवान॥
पैसों पर शिक्षा टिकी, पैसों पर रोज़गार।
सदा समाजी हैसियत, रिश्तों का आधार॥
नीचे से संसद तलक, बस पैसों का खेल।
आजीवन हर काम में, पैसों का गठमेल॥
रोज़-रोज़ का झूठ छल, राग द्वेष अपमान।
बस पैसों की चाह में, लेना है अहसान॥
पैसा ही इन्सानियत, पैसा ही ईमान।
आतिथेय पैसा टिका, मानद या अरमान॥
न्यायगेह में न्याय अब, पैसों पर है प्राप्त।
बिन पैसे की ज़िंदगी, कहाँ मिलेंगे आप्त॥
पति पत्नी माँ बाप हो, बेटा बेटी साथ।
पैसों से सब हैं जुड़े, छुटे पैसे बिन हाथ॥
चकाचौंध रूमानियत, है उन्नति आधार।
धर्म जाति भाषा जगह, पैसा ही तकरार॥
पैसों से खिलता चमन, पैसा ही मुस्कान।
कौन इतर अपना यहाँ, पैसों से पहचान॥
मीत नीति मन प्रीति हो, वैवाहिक आचार।
बिना अर्थ सब व्यर्थ ही, जीवन है दुश्वार॥
बिन पैसों का आदमी, जीवन है सुनसान।
लावारिश फेंका हुआ, लाश जन्तु तू मान॥
पैसों की हैं चाबुकें, इंसानों की पीठ।
पर पैसों की बेबसी, ज़िंदा है बन ढीठ॥
कवि निकुंज महिमा अगम, पैसा मायाजाल।
डिग्रियाँ रख संदूक में, बिन पैसे बदहाल॥
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