जीवन - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

जीवन - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' | Muktak - Jeevan. जीवन पर मुक्तक रचना
अरे! 'अंशुमाली' लघु जीवन फिर भी चलते जाना है।
नंद नाले कंटक वन गह्वर में भी बढ़ते जाना है।
जीवन के पन बीत रहे हैं फिर भी संबल मत खोना–
निविड़ पंथ में भी दीपक सा झिलमिल जलते जाना है।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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