कौन जीता है, कौन मरता है - कविता - बिंदेश कुमार झा
रविवार, सितंबर 08, 2024
अनंत नभ के नीचे,
अपनी गति से चलता है,
निरंतर असफल प्रयास
से जो नहीं ठहरता है।
जो अश्रु नहीं, लहु पीता है,
वही जीता है।
जो नभ को कण समझता है,
ग्रीष्म में जो ठिठुरते हैं,
एक चोट में राह बदलता,
भूमि पर बिखरता है।
अगले क़दम से डरता है,
वही मरता है।
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