कौन जीता है, कौन मरता है - कविता - बिंदेश कुमार झा

कौन जीता है, कौन मरता है - कविता - बिंदेश कुमार झा | Hindi Prerak Kavita - Kaun Jeeta Hai Kaun Marta Hai
अनंत नभ के नीचे,
अपनी गति से चलता है,
निरंतर असफल प्रयास
से जो नहीं ठहरता है।
जो अश्रु नहीं, लहु पीता है,
वही जीता है।

जो नभ को कण समझता है,
ग्रीष्म में जो ठिठुरते हैं,
एक चोट में राह बदलता,
भूमि पर बिखरता है।
अगले क़दम से डरता है,
वही मरता है।
 
बिंदेश कुमार झा - नई दिल्ली (दिल्ली)

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