समय चक्र घूमा जब युग का
अँधकार गहरा छाया।
सन 1858 में
भारत में अंग्रेजी शासन आया॥
नापाक इरादों से गोरों ने
दुर्दिन को अंजाम दिया।
ईस्ट इंडिया बना कंपनी
भारत को प्रस्थान किया॥
घूम गई थी धुरी विश्व की
अंग्रेजी अत्याचारों से।
भारत माँ भी बँधी हुई थी
क्रूर जटिल ज़ंजीरों से॥
उदय सितारा हुआ क्षितिज पर
जग ने बापू नाम दिया।
सत्य अहिंसा की ताक़त से
दासत्व की बेड़ियाँ काट दिया॥
सत्य अहिंसा के साधक थे
प्रेम के पैरोकार रहे।
सत्याग्रह अभियान के बल पर
आज़ादी के सफ़ीर रहे॥
असहयोग, चंपारण, खेड़ा
नमक आंदोलन के अग्रदूत।
नारा स्वराज का बुलंद किया
दलितों के थे तुम देवदूत॥
स्वाधीनता के भीषण रण में
अपना जीवन क़ुर्बान किया।
रक्षक-प्रखर, सजग-प्रहरी बन
नवयुग का निर्माण किया॥
स्वच्छता के सेवक संन्यासी
जन-गण-मन के नायक थे।
अस्पृश्यता मिटाना लक्ष्य सिद्ध था
निर्बल निर्धन के सेवक थे॥
फ़ौलादी थी सोच तुम्हारी
दृढ़संकल्प समाहित मन में।
माँ भारती के सच्चे सपूत
राष्ट्र प्रेम भरा था तन में॥
कर गए वतन सुरक्षित अपना
चले महानिर्वाण।
हे भारत के शिल्पकार!
श्रद्धा विनत प्रणाम॥
आर॰ सी॰ यादव - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)