घर साथ चले - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी

रज़ा है के दुआओं का असर साथ चले,
के मैं जब शहर जाऊँ तो घर साथ चले।

मुझे डराने वैसे बहुत से हैं हालात चले,
कभी मंज़िल चले तो कभी ताल्लुक़ात चले।
सबकी सुनते हो तो मेरी भी सुन लेना,
के मैं जब शहर जाऊँ तो घर साथ चले।

वीरान गलियाँ और विराना रस्ता,
गुज़रा कोई अरसे से नहीं,
लग रहा है पुराना रस्ता।
इस रस्ते पर डर-डर के मेरे जज़्बात चले,
सबकी सुनते हो तो मेरी भी सुन लेना,
के मैं जब शहर जाऊँ तो घर साथ चले।

छोटा सा कमरा और पूरी गृहस्थी,
ज़रूरत के अलावा न कोई चीज़ सस्ती।
नौकरी में सिफ़ारिश, चापलूसी और जात चले,
सबकी सुनते हो तो मेरी भी सुन लेना,
के मैं जब शहर जाऊँ तो घर साथ चले।

ख़र्चने पर दोस्त और पैसे से पानी,
अजीबोग़रीब है शहर की कहानी।
आदमी डाल-डाल चले तो,
परेशानी पात-पात चले।
सबकी सुनते हो तो मेरी भी सुन लेना,
के मैं जब शहर जाऊँ तो घर साथ चले।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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