हिन्दी तुझे बुला रही - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'

हिन्दी तुझे बुला रही ऐ! हिन्दी ज़बान वाले,
सिमट रही मेरी दुनिया आके मुझे बचाले।

बहुत हरा भरा अपना प्यारा ये परिवार है,
दुनिया के कोने-कोने तक फैला संचार है।
रस छंद और समास की महिमा अपरम्पार है,
मगर मेरे बच्चों को देखो अंग्रेजी से प्यार है।
बिखर रहा है मेरा परिवार कोई इसे सँभाले?
हिन्दी तुझे बुला रही ऐ! हिन्दी ज़बान वाले।

माता-पिता बदलकर आज माम डैड हो गए,
भाई ब्रो बन गया मित्र सारे फ्रेंड हो गए।
बहना सीस हो गई अजब ट्रेंड हो गए,
इससे कहाँ दुखी है कोई सब सैड हो गए।
फूड हो गए है खाने गुम हो गए निवाले,
हिन्दी तुझे बुला रही ऐ! हिन्दी ज़बान वाले।

रिश्ता नाता आज का अब रिलेशन हो गया,
प्यार नहीं है कही भी लव का फैशन हो गया।
अपनों से प्रीति भाव नहीं बस इमोशन हो गया,
सच है लाचार बेबस झूठ प्रमोशन हो गया।
टूट रहे तेरे रिश्ते नाते आके इसे बचा ले,
हिन्दी तुझे बुला रही ऐ! हिन्दी ज़बान वाले।

जयप्रकाश 'जय बाबू' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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