काजल कंगन बाली झुमका, ख़ुद को ख़ूब सजाऊँगी।
रूठ गए हैं पिया हमारे, उनको आज मनाऊँगी।
छोटी-छोटी बातों में हम,
जीवन नहीं गँवाएँगे।
इस चार दिन की ज़िंदगी में,
अनबन नहीं बनाएँगें।
दो तन पर हम एक रहेगें, प्रेम प्रगाढ़ बनाऊँगी।
रूठ गए हैं पिया हमारे, उनको आज मनाऊँगी॥
फल से लदी हुई ही डाली,
झुक कर नीचे आती है।
प्रेम दया सहयोग समर्पण,
पति-पत्नी की थाती है।
अब न चले बिन पहिया गाड़ी, मिलकर क़दम बढ़ाऊँगी।
रूठ गए हैं पिया हमारे, उनको आज मनाऊँगी॥
पूड़ी खीर मिठाई हलुआ,
औ' लिट्टी बाटी चोखा।
हर व्यजंन में प्यार भरूँगी,
खा न जाऊँ कहीं धोखा।
करूँगी निहोरा हठ करके, तिरछी नज़र लड़ाऊँगी।
रूठ गए हैं पिया हमारे, उनको आज मनाऊँगी॥
संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)