लफ़्ज़ प्यार के ज़ुबाँ से कह जाएँगे,
रुख़सत होंगे तो अश्क बह जाएँगे।
नफ़रत के पहाड़ दिलों में है हमारे,
कल तक पहाड़ देखना ढह जाएँगे।
चला जाएगा ये दौर-ऐ-आलम भी,
कुछ पल इसे अगर हम सह जाएँगे।
सब्र और सलीक़े सिखाते क्या-क्या,
जब हक़ीक़त दहर को कह जाएँगे।
लम्हे जब दास्ताँ सुनाएँगें हमारे भी,
कल ज़माने को याद हम रह जाएँगे।
सकुन-ऐ-ज़िंदगी है इसी में है 'जैदि'
नम होगी आँखें जब छोड़ देह जाएँगे।
एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि' - बीकानेर (राजस्थान)