तेरे जाते क़दमों के निशान
समंदर की रेत पर,
आज भी नज़र आते है
उन राहों पर बिखरे मेरे अरमाँ
तेरे क़दमों में मिले,
आज भी नज़र आते है।
ओढ़ एहसासों की लहरें
तेरी यादों के तकिए पर सोई
कुछ उलझी, कुछ सुलझी
सीप बन आँसुओं के,
विस्मृत मोती सँजोई।
धुँधली फ़िज़ाएँ,
तेरी यादों की लिपेट चादर
शीत निद्रा, दिवा-स्वप्न मुंद्रा
शमन करता तेरा चेहरा
तेरी सुध में होती सादर।
अवनीत कौर 'दीपाली' - गुवाहाटी (असम)