आज़ादी - कविता - पशुपतिनाथ प्रसाद

इस तिरंगा की रक्षा में
हम कितने ख़ून बहाएँ हैं,
लाखों मस्तक बलिदान हुए
तब आज़ादी हम पाएँ हैं।

कितनी माँगों का सिंदूर
इस आज़ादी में दान हुए,
कितनी माँ की गोदियों ने
अपना सपूत बलिदान किए।

इस अमूल्य धरोहर की 
रक्षा नहीं कर हम पाएँगे,
तो परजीवी बन जाएँगे
कायर कृतध्न कहाएँगे।

स्वतंत्रता सा कोई सुख नहीं
परतंत्रता सा कोई दुख नहीं,
जो नहीं समझ पाता इसको
उस ऐसा बेवक़ूफ़ नहीं।

ग़ुलाम बनकर जीने से
मर जाना ही बेहतर है,
स्वभिमान गँवा दिया जिसने
वे कुत्ता से भी बदतर हैं।

पिंजरा में बंद पक्षी भी
आज़ादी हेतु तरसता है,
भोजन पानी भरपूर है पर
आँखों से दुख बरसता है।

सब कुछ अर्पण करके भी
आज़ादी हेतु लड़ेंगे हम,
हम सब की प्रतिज्ञा है
इसकी रक्षा को करेंगे हम।

पशुपतिनाथ प्रसाद - बेतिया (बिहार)

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