किसी क़ीमत पे मेरा प्यार यूँ ज़ाया नहीं होता - ग़ज़ल - सुखवीर चौधरी

अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 1222 1222 1222 1222

किसी क़ीमत पे मेरा प्यार यूँ ज़ाया नहीं होता,
मुझे दुनिया के लोगों ने जो ठुकराया नहीं होता।

हमारे देश में दंगे कभी हरगिज़ नहीं होते ,
अगर हिन्दू, मुसलमानों को भड़काया नहीं होता।

किसी भी हाल में औरत कभी वैश्या नहीं बनती,
अगर मर्दों ने उन पर ज़ुल्म जो ढ़ाया नहीं होता।

कभी लाचार, बेबस और मैं पागल नहीं बनता,
मुझे महबूब ने मेरे जो तड़पाया नहीं होता।

तभी लेकर सभी डिग्री बड़ा अफ़सर मैं बन जाता,
तुम्हारे प्यार के झाँसे में यदि आया नहीं होता।

सुखवीर चौधरी - मथुरा (उत्तर प्रदेश)

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