संसार लेकर किया करोगे - गीत - रश्मि प्रभाकर

तुम नहीं स्तम्भ सारा भार लेकर क्या करोगे?
जब धरा तुम हो नहीं आधार लेकर क्या करोगे?

तुम रहो बादल बने, जब तब गगन पर छा गए,
जब सहा ना जाए ख़ुद का बोझ नीचे आ गए,
तुम धरा की मौन मिट्टी में मिलो पावन बनो,
लो कोई आकार फिर से और मन भावन बनो,
तुम हो बंजारे तो घर संसार लेकर क्या करोगे?

तुम किसी की नीड़ बन उसको सहारा दे चलो,
तुम बनो नदिया का पानी सब बहा के ले चलो,
तुम बनो वो वृक्ष जो फल दे ना दे छाया तो दे,
तुम बनो वो रोशनी जो देह को साया तो दे,
तुम कोई बेकार का आकार लेकर क्या करोगे?

तुम हो बेहतर कितनो से, सोचो कि तुम इंसान हो,
सोचते हो किन्तु ख़ुद को जैसे तुम भगवान हो,
जो मिला तुमको वो मिलता है नसीबों से यहाँ,
करके देखो ख़ुद की तुलना तुम ग़रीबों से यहाँ,
तुम हो सबसे श्रेष्ठ भ्रम बेकार लेकर क्या करोगे।

तुम बनो राहत किसी के दर्द का मरहम बनो,
तुम बनो ख़ुशियाँ किसी की मत किसी का ग़म बनो,
कर सको तो तुम करो उपकार कोई जी उठे,
दे सको तो दो कोई अमृत सदृश रस पी उठे,
तुम किसी उपकार का उपहार लेकर क्या करोगे?

तुम बनो वो मीत जिससे हर किसी को प्यार हो,
तुम बनो वो गीत जिसमें प्यार का इज़हार हो,
छल कपट के भाव से हृदय तुम्हारा दूर हो,
हो सुखद तन मन सुपावन और सुख भरपूर हो,
तुम किसी निष्प्राण पर अधिकार लेकर क्या करोगे?

रश्मि प्रभाकर - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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