मृत्यु का आभास जब होने लगा,
सद्गुणों का तब उदय होने लगा।
चिंता छोड़ सत्कर्म को हम जुटे,
मृत्यु भय से जीवन खिलने लगा।।
मैं और मेरा हम करते रहें,
धन सम्पती को जोड़ते रहें।
अंतिम समय जब आया,
सभी जतन व्यर्थ लगने लगें।।
सभ्य शालीनता की पहचान,
शांत सौम्य हँसमुख इंसान।
आज के दौर का यही ज्ञान,
सत्कर्मों से सदा कल्याण।।
कुन्दन पाटिल - देवास (मध्यप्रदेश)